Note:- हमारा रिपोर्ट यह ग्रह (planets) इनके गुरुत्वाकर्षण (Gravitational force) और ब्रम्हाड आकाशगंगा (Galaxy ) में स्थित अनेक तारों (star's ) से निकलने वाले अल्फ़ा, बीटा, गामा किरणों का प्रभाव हमारे मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र (Brain - Neurons) पर पड़ता है . उसी इफेक्ट को आधार बनाकर यह हमारे रिपोर्ट बनाए गए है . विस्तार से समझने के लिए हम वैदिक ज्ञान (ज्योतिष) का जो हिस्सा मनोविज्ञान और सायन्स* से सलग्न है, सिर्फ उन बातों पर हम विचार करेंगे.
A)न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का नियम
आइज़क न्यूटन ने अपनी मौलिक खोजों के आधार पर बताया कि केवल पृथ्वी ही नहीं, अपितु विश्व का प्रत्येक कण प्रत्येक दूसरे कण को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है. दो कणों के बीच कार्य करनेवाला आकर्षण बल उन कणों की संहतियों के गुणनफल का (प्रत्यक्ष) समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होता है. कणों के बीच कार्य करनेवाले पारस्परिक आकर्षण को गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) तथा उससे उत्पन्न बल को गुरुत्वाकर्षण बल (Force of Gravitation) कहते है.
B)पृथ्वी जैसे सूरज की चारो ओर चक्कर लगाती है, उसी प्रकार, सूर्य भी उस से भी बड़े तारे की चारो ओर चक्कर लगाता है. वह तारा उस के जैसे करोड़ो तारों के साथ आकाशगंगा के चारो ओर चक्कर लगाता है, हमारी आकाशगंगा जैसी अनेकों आकाशगंगा ब्रम्हाड में है, उन का आपस में संतुलन एक दूसरे के/संतुलित गुरुत्वीय बल के कारण होता है.
c) आकाशगंगा (गैलेक्सी) कितनी बड़ी है इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है की अगर हमारे पूरे सौर मण्डल के चक्र के क्षेत्रफल को एक रुपये के सिक्के जितना समझ लिया जाए तो उसकी तुलना में आकाशगंगा का क्षेत्रफल भारत का डेढ़ गुना होगा.(पृथ्वी मानो एक रेत का कण हो.)
D) पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति की क्रियाशीलता ही ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का प्रमुख कारण हैं. चन्द्रमा का ज्वार-उत्पादक बल सूर्य की अपेक्षा दुगुना होता है, क्योंकि वह सूर्य की तुलना में पृथ्वी के अधिक निकट है. अमावस्या और पूर्णिमा के दिन (180 अथवा 0 डिग्री ) चन्द्रमा, सूर्य एवं पृथ्वी एक सीध में होते हैं, तो उच्च ज्वार उत्पन्न होता है. दोनों पक्षों की सप्तमी या अष्टमी को सूर्य और चन्द्रमा पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाते हैं,(90 डिग्री) इस स्थिति में सूर्य और चन्द्रमा के आकर्षण बल एक-दुसरे को संतुलित करने के प्रयास में प्रभावहीन हो जाते हैं तो निम्न ज्वार उत्पन्न होता है. और एकादशी के दिन (120 डिग्री ) संतुलन बना रहता है. मानवी शरीर पर भी उस का प्रभाव होता है.( इस लिए उसे पवित्र शुभ दिन माना जाता है. लेकिन उस के पीछे सायन्स है.)
E)विज्ञानं कहता है कि मानव शरीर में भी लगभग 60 प्रतिशत जल होता है- मस्तिष्क में 85 प्रतिशत जल है, रक्त में 79 प्रतिशत जल है,तो क्या इन बाहरी गुरुत्वाकर्षण शक्ति का हमारे शरीर में सकारात्मक और नकारात्मक परिणाम नहीं होते होंगे? .....जोतिष शास्त्र भी कुछ अंशो में सायन्स ही है. हम ने भारतीय और विदेशी जोतिष शास्त्र के सिर्फ जो हिस्से 100 % सायन्स के साथ मेल खा रहें है उदा.(कुंडली में ग्रहों के बीच डिग्री ), अथवा जिसे अनेकों के अनुभव के संशोधन के बाद सार्वकालिन सत्य माना गया हो, (ग्रह के गुण/ नक्षत्र) उन सभी का उपयोग करते हुए, हमने अपने संशोधन के आधारपर, यह रिपोर्ट बनाने की कोशिश की है. एक बहुत आसान तरीके से अपने आप को जान सके. उदा:- जैसे किसी भी धातु को पिघलाकर, जब नवनिर्माण होता है, उस वक्त भट्टी से बाहर निकलते ही बाहरी परिस्थितियों के कारण जो बॉड स्ट्रक्चर बनता है, हार्डनेस बदलता भी है,.उसी प्रकार, हमारा शरीर, माँ के गर्भजल के सुरक्षित माहौल से बाहर आता है, तब उसपर बाहर के सभी माहौल (ग्रहों और तारों की गुरुत्वीय शक्ति ) का प्रभाव उस पर पड़ता है. और बच्चे क व्यक्तित्व बनता है, भविष्य में उसी प्रकार का सकारात्मक कोण वाला माहौल मिलता है, तब तब व्यक्ति सकारात्मक ऊर्जा से काम करता है. उस गोचर की ग्रहों के सकारात्मक डायरेक्शन को ही हम नसीब कहते है.( हर परिस्थिति में मानव या तो उत्तेजित होता है या निराश अथवा स्थिर, उस के परिणाम स्वरूप एक की परिस्थिति/ समस्या में वह अलग निर्णय ले सकता है. निर्णय के परिणामों को लोग नसीब मानते है. )
रिपोर्ट लेने से पहले यह समझ लो यह रिपोर्ट आप का नसीब नहीं बताती. तो आप को प्रकृति (भगवान) ने दी हुई जन्मजात सभी क्षमता, वृत्ति और प्रवृत्ति को बताती है, यही क्षमताएं जो आगे चलकर आप को तरक्की देती है. उसे हम नसीब कहते है . उस में आप अपने कर्म /प्रयत्न से परिवर्तन कर सकते है. पॉवरफुल क्षमताओं को कण्ट्रोल करना है और कमजोर को मजबूत. तब हम नसीब को बदल सकते है.
हमारा रिपोर्ट एस्ट्रोलोजी से जुड़ा है, लेकिन कुंडली के कैलकुलेशन्स और ग्रह परस्पर सम्बन्ध या मार्क्स देने के लिए हम ने 100 % सायन्स के नियमों को (Gravitational force &....etc.) महत्व दिया है. सिर्फ ग्रह और नक्षत्र के गुणधर्म यह पारम्पारिक वैदिक ज्योतिषशास्त्र से लिए है. निरयन, चलित कुंडली और पाश्च्यात्य कुंडली, नाडी ज्योतिष और KP पद्धति का मेल कैलकुलेशन में किया है. NASA ने किये अवकाश संशोधन को भी हम ने आधार बनाया है.
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